जोगिन्दर नगर के कुनडूनी, नेर घरवासड़ा, बुन्हला महरौली, निक्की ठाणा, कोटला व अन्य गांवों के आपदा प्रभावित परिवारों की पीड़ा लगातार बढ़ रही है। मुआवजा राशि भी अभी कुछ ही परिवारों को मिली है तथा कई परिवार ऐसे हैं जिनको अपने मकान खाली कर दूसरी जगह किराए के मकानों में रहना पड़ रहा है, लेकिन सभी प्रभावितों को प्रशासन की तरफ से मकान का किराया नहीं दिया जा रहा है और भी कई मुद्दे हैं जिनको लेकर हिमाचल किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष एवं जिला परिषद सदस्य कुशाल भारद्वाज के नेतृत्व में आज जोगिंदर नगर में एसडीएम से मिले तथा किसान सभा एवं प्रभावितों की तरफ से मुख्यमंत्री को मांगों संबंधी ज्ञापन भेजा।
इस अवसर पर कुशाल भारद्वाज ने बताया कि इस बार की आपदा में जोगिंदर नगर उपमंडल में सैकड़ों परिवार प्रभावित हुए हैं। नेर घरवासड़ा पंचायत के कुण्डुनी, नेर, मनोह में घरवासड़ा में ही 68 परिवार प्रभावित हुए हैं तथा जमीन धंसने और भूस्खलन के कारण कई मकान जमींदोज हो गए तथा खतरे के चलते अन्य परिवारों को भी घर खाली करके अन्यत्र शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है। यदि भूस्खलन से स्थिति और बिगड़ी, तो नेर खड्ड में प्राकृतिक डैम बन सकता है जिससे जान-माल का नुकसान और बढ़ जाएगा। टिकरी मुशैहरा पंचायत के निक्का ठाणा व बुन्हला महरोला गांवों के 12 परिवार पिछले अढ़ाई महीने से शिविर में रह रहे हैं। लांगणा पंचायत के कोटला गांव में भी कई घर ध्वस्त हो गए तथा 12 परिवार अन्यत्र शरण लिए हुए हैं। अन्य अनेक गांवों में भूस्खलन व जमीन धंसने से घरों व गौशालाओं को भारी नुकसान हुआ है। ज्यादातर जगहें पुनः बसने लायक नहीं रही हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि जिनके घर क्षतिग्रस्त हुए हैं या फिर जो घर खतरे वाली जगह होने के कारण खाली करवाए गए हैं तथा जहां भविष्य में भी खतरा बरकरार है उनमें प्रत्येक प्रभावित परिवार को ₹7 लाख का मकान मुआवजा दिया जाए। जिनका घर या गौशाला में रखा सामान क्षतिग्रस्त हुआ है उसको पटवारी के रोजनामचे में दर्ज करवाकर प्रभावित परिवारों को ऐसे क्षतिग्रस्त सामान का भी मुआवजा दिया जाए। क्षतिग्रस्त हुई गौशालाओं एवं मारे गए पशुधन का प्रभावितों को अलग से मुआवजा दिया जाए। नए मकानों की स्वीकृति और कॉऊशेड के लिए मनरेगा से ₹1 लाख की सेल्फ डलवाई जाएं। प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन और मकान के बदले मकान दिए जाएं। जो प्रभावित खतरे और भूस्खलन वाली जगह का सरकारी जमीन से तबादला करवाना चाहते हैं, उन्हें सरकार तबादले की जमीन उपलब्ध करवाए। जब तक प्रभावित परिवारों के नए मकान नहीं बन जाते हैं, तब तक उन्हें किराए के मकान में रहने हेतु प्रति माह पांच हजार रुपए किराया के रूप में सरकार की तरफ से सहायता जारी रखी जाए। यह किराया उन सब परिवारों को भी दिया जाए, जो भूस्खलन के बाद पहले ही दिन शिविर में रहने की अपेक्षा कहीं अन्यत्र शरण लेने पर विवश हुए थे।
कुशाल भारद्वाज ने कहा कि किसी भी प्रभावित को वापस खतरे वाले मकानों में तब तक न भेजा जाए जब तक केंद्रीय भूगर्भ विभाग और राज्य के भूगर्भ विभाग की संयुक्त टीम खतरे वाले मकानों में वापस जाने की अनुशंसा नहीं करती है। 1980 के वन संरक्षण कानून में संशोधन कर वन भूमि को हिमाचल सरकार को हस्तांतरित की जाए। शामलात भूमि व अन्य सामूहिक भूमि को वन विभाग से अलग किया जाए तथा राज्य सरकार के पास यह भूमि हो ताकि राज्य सरकार आपदा प्रभावितों को जमीन दे सके। 2006 के वन अधिकार कानून को लागू कर प्रभावितों को स्थायी पट्टे और नियमितीकरण दिया जाए।
ज्ञापन में किसान सभा ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि प्रभावितों की पीड़ा को महसूस करते हुए शीघ्र ही इस बारे में उपयुक्त निर्देश संबंधित अधिकारियों को दें, ताकि प्रभावितों का पुनर्वास व पुनर्स्थापन हो सके।
उन्होंने एसडीएम से मांग की कि मझारनू से बस्सी वाया कुण्डुनी तथा बस्सी से मझारनू की तरफ बसों की आवाजाही फिर से शुरू की जाए। बसें न चलने से छात्रों, कर्मचारियों और आम लोगों को भारी परेशानी हो रही है। उन्होंने प्रभावित क्षेत्र में बिजली पानी भी बहाल करने की मांग की। कुशाल भारद्वाज ने इस संबंध में एचआरटीसी अधिकारियों से भी बात की। इस पर एसडीएम व एचआरटीसी अधिकारियों ने आश्वस्त किया कि शीघ्र ही बस सेवा पुनः बहाल कर दी जाएगी। एसडीएम ने आश्वस्त किया कि बिजली पानी के लिए संबंधित विभागों अधिकारियों से बात करेंगे।
किसान सभा ने चेतावनी दी कि यदि जल्दी मांगें नहीं मानी तो वे जिलाधीश कार्यालय तथा प्रदेश सचिवालय के बाहर भी प्रदर्शन करने को विवश होंगे।
किसान सभा व प्रभावितों के इस प्रतिनिधिमंडल में हल्कू राम, छोटू, मस्त राम, रोशन लाल, चमन, अरुण कपूर, निखिल, हरि सिंह, गुलाब सिंह, पवन ठाकुर, नीमा देवी, सैना देवी, सुमन, विमला, पावन सुनील, रमेश, मदन, प्रेम चंद, सरगू राम, रवि कुमार सहित 93 लोग शामिल थे।
