संपादकीय 28 जून 2025…
हिमाचल कैबिनेट के उम्रदराज मंत्री डॉ धनी राम शांडिल जो कि सोलन से अपनी जीत की हैट्रिक लगा चुके है और विधायक बनने से पहले दो बार लोकसभा के सदस्य रह चुके है आखिर उन्होने चुनावी राजनीति से तौबा कर दी है और अगला चुनाव न लड़ने की घोषणा करदी है। इस घोषणा के साथ ही उन्होने अपनी राजनैतिक विरासत अपने बेटे जो हाल ही मे हुए रिटायर कर्नल संजय शांडिल को सौंपने की भी घोषणा की है। स्मरण रहे कर्नल धनीराम शांडिल ने धोबटन मेले के दौरान एक कार्यक्रम मे सार्वजनिक मंच से साफ किया कि अब राजनीति का अगला पड़ाव उनका बेटा ही देखेगा। उनकी इस घोषणा की राजनीति के गलियारो मे खूब चर्चा हो रही है। यह घोषणा लोकतंत्र काल मे राजतंत्र काल की याद दिलाती है। कर्नल धनीराम शाडिंल सोलन निर्वाचन क्षेत्र के सम्मानित प्रतिनिधि तो जरूर है लेकिन वह अपने को सोलन रियासत के राजा समझने की भूल न करें। यह भी पूछा जा रहा है कि धनीराम शांडिल पुत्रमोह के चलते अपने पुत्र को बिना कांग्रेस हाईकमान की अनुमति के कैसे अपना राजनैतिक वारिस घोषित कर सकते। यह राजनीति शांडिल साहब के पास लोगो की अमानत है। यह कर्नल शांडिल की पैतृक सम्पति नही है। यह कह कर उन्होने उन दर्जनो कांग्रेस के कार्यकर्ताओ की आशाओ पर पानी फेर दिया है जो कर्नल धनीराम शांडिल की रिटायरमैंट के बाद चुनाव मे अपनी किस्मत आजमाने का सपना संजोए थे। काबिलेगौर है कि अगर मंत्री जी यह घोषणा न भी करते तब भी उनके बेटे को सोलन से कांग्रेस टिकट का दावेदार माना जा रहा था।
मेरे अनुसारसंजय शांडिल के विधायक बनने के लिए मंत्री जी की न यह घोषणा और न ही कांग्रेस का टिकट काफी होगा। इसके लिए सबसे जरूरी है सोलन के मतदाताओ का समर्थन और आशीर्वाद है। यह बात भी दर्ज करने काबिल है कि कांग्रेस मे परिवारवाद और विरासतवाद को नया नही है न ही कांग्रेस मे इसे बुरा माना जाता है। हिमाचल जैसे छोटे प्रदेश मे कांग्रेस के कारण ही एक समय मे पिता- पुत्र विधानसभा मे थे और पति- पत्नी एक साथ विधानसभा सदस्य है, लेकिन कर्नल धनीराम शांडिल जैसे शालीन व्यक्ति से लोकतंत्र की स्थापित परम्पराओ और लोकतंत्र की भावना के विपरीत ऐसी घोषणा की उम्मीद नही थी। बेहतर होता कि वह कांग्रेस की उम्मीदवारी की जगह जनसेवा की वैटिन अपने पुत्र को सौंपते। मेरा ब्लॉग कर्नल धनीराम शांडिल के ध्यान मे विचार करने हेतु प्रदेश के वरिष्ठतम नेता शांता कुमार जी का उदाहरण लाना जरूरी समझता है। वर्ष 1990 मे शांता जी एक ही समय मे दो विधानसभा क्षेत्रो पालमपुर और सुलहा के विधायक थे। वह उसी समय कांगडा लोकसभा के सांसद भी थे। उनको एक विधानसभा सीट और लोकसभा सीट से त्यागपत्र देना था। उन दोनो सीटो से नये उम्मीदवारी का चयन होना था। उनके कुछ शुभचिंतक चाहते थे कि वह एक सीट अपने पुत्र या पत्नी को उम्मीदवार के तौर पर नामित करे, लेकिन शांता जी ने ऐसा करने से इंकार करते हुए कहा कि यह राजनीति मेरी पैतृक संम्पति नही है अपितु पार्टी के कार्यकर्ताओ की अमानत है। इसके चलते दो कार्यकर्ताओ को चुना गया और उन्हे टिकट दिया गया।
